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श्रीकृष्ण ने भी मोहिनी का रूप लेकर विवाह किया था, जानिए पौराणिक दस्तावेजों से किन्नरों के इतिहास की दास्तां


महिला-पुरुष के अलावा इस दुनिया में मनुष्य की तीसरी प्रजाति भी है जिन्हें हम किन्नर के नाम से बुलाते हैं. किन्नर ना तो खुद को महिलाओं की श्रेणी में रख सकते हैं और ना ही ये पुरुष होने की शर्त पूरी करते हैं. इसलिए अलग-थलग पड़ चुके ये लोग अपने आप को समाज की मुख्य धारा में शामिल नहीं कर पाते. हीन भावना से ग्रस्त ये लोग पिछले काफी समय से अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे थे और अंतत: सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय का दर्जा देकर उन्हें आरक्षण का विशेष लाभ उपलब्ध करवाया है. पीटीआई की खबर की मानें तो सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि किन्नर भी इस देश के नागरिक है और उन्हें समान जीवन यापन करने का पूरा अधिकार है. अदालत के इस निर्णय के बाद अब किन्नरों को पिछड़े वर्ग में शामिल लोगों की तरह ही आरक्षण और अन्य सुविधाएं मुहैया करवाई जाएंगी.


किन्नर, कोई इन्हें श्रापित जाति कहता है तो कोई इन्हें मानव जीवन की तीसरी प्रजाति के रूप में देखता है. सदियों से इस दुनिया में किन्नरों का अस्तित्व रहा है. महाभारत काल से लेकर मुगलों के शासन काल तक हर युग में, हर काल में किन्नरों की प्रमुख भूमिका रही है. कभी ईश्वर के रूप में दुष्टों का संहार करने के लिए तो कभी पृथ्वी पर अवतार जनने जैसे कार्यों के लिए देवी-देवताओं ने महिलाओं और पुरुष का वेष बदला, कुछ ने किन्नर का रूप धरा तो कुछ अपना लिंग बदलकर महिला से पुरुष या पुरुष से महिला बन गए और यह सब हुआ किसी ना किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए.

आज हम आपको किन्नरों के अस्तित्व और भिन्न-भिन्न कालों में उनकी उपस्थिति से जुड़ी कुछ बेहद रोचक घटनाएं बताएंगे, जिन्हें जानने के बाद आपको पता चलेगा कि किन्नरों या ट्रासजेंडरों का हमारे पौराणिक इतिहास में क्या महत्व रहा है:

हिन्दू धर्म में कई देवी-देवताओं को महिला-पुरुष दोनों के रूप में पेश किया गया है या कभी पुनर्जन्म के बाद उनका स्वरूप पूरी बदला हुआ दर्शाया गया है. शिव-पार्वती का रूप अर्धनारीश्वर इसी का एक रूप है.


भागवत पुराण में विष्णु के रूप में मोहिनी और शिव के संबंध को भी दर्शाया गया है. राक्षसों के मुख से अमृत छीनने के लिए विष्णु ने मोहिनी का रूप धरा, मोहिनी के रूप पर शिव आकर्षित हो गए और उन दोनों से जो पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम रखा गया अयप्पा.

महाभारत के तमिल संस्करण में उल्लिखित है कि भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने भी मोहिनी का रूप धरकर अरावन से विवाह किया था. इसके पीछे उद्देश्य सिर्फ इतना था कि मृत्यु से पहले अरावन भी प्रेम भावना को महसूस कर ले. अरावन की मृत्यु के बाद मोहिनी रूप में श्रीकृष्ण ने काफी समय तक शोक भी किया था.

देवी-देवताओं के इतर महाभारत काल में अन्य कई रूपों में भी ट्रासजेंडर या किन्नरों को देखा जा सकता है. महाभारत का एक महत्वपूर्ण किरदार शिखंडी का जन्म तो एक लड़की के रूप में हुआ लेकिन दैवीय आदेशानुसार महाराज द्रुपद ने उसका पालन पोषण पुरुष के रूप में किया. यही शिखंडी आगे चलकर भीष्म की मृत्यु का कारण बना.

अर्जुन को भी एक श्राप ने किन्नर बना दिया था. जब अर्जुन ने अप्सरा उर्वशी के प्रेम निमंत्रण को ठुकरा दिया था तब उर्वशी ने अर्जुन को किन्नर समुदाय का सदस्य होने का श्राप दे दिया था. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को आश्वस्त किया कि ये श्राप उनके अज्ञातवास के समय वरदान सबित होगा और कौरवों से मिले अज्ञातवास में बृहन्नला के रूप में अर्जुन ने अपने वनवास का आखिरी वर्ष गुजारा. जहां वह महिला बनकर विराट राजा की पुत्री उत्तरा और उनकी सहेलियों को नाचना-गाना सिखाते थे.

समाज में हीन समझे जाने किन्नर समुदाय के लोगों को श्रापित माना जाता है, लोग उनके इस जन्म को उनके पिछले जन्म के पापों का फल मानते हैं. सदियों से किन्नर समुदाय समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है और अब संवैधानिक अधिकार मिलने के बाद उम्मीद है कि उनकी सामाजिक स्थिति में परिमार्जन होगा.

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